राजनांदगांव : खरीफ फसल में बीमारियों के आने की संभावनाओं को देखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने जारी किया कृषक सलाह…

खेत में हरी काइयो का प्रकोप दिख रहा है तो पानी की निकासी करने की सलाह दी गई। खेत में जिस जगह से पानी जाता है वहां कॉपर सल्फेट को पोटली में बांधकर रखना चाहिए। धान में 35-40 दिन की अवस्था में जहां धान की फसल, कंसे निकलने की अवस्था में हो वहां नाइट्रोजन  की दूसरी मात्रा का छिड़काव (टॉप ड्रेसिंग) करना चाहिए। जिससे कंसे की स्थिति में सुधार आयेगा, फसल में कीट या खरपतवार होने की स्थिति में दोनों के नियंत्रण के बाद यूरिया 40 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करने की सलाह दी गई। धान के खेत में 5 सेमी. से अधिक पानी न भरने दें। सोयाबीन फसल किसानों को सलाह दी गई कि जिन स्थानों पर गर्डल बीटल का प्रकोप शुरू हो गया हो वहां पर थाइक्लोपीड 21.7 एससी 750 मिली/हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। पत्ती खाने वाली इल्लियों तथा सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए पूर्व मिश्रित कीटनाशक बीटासायफ्लूथ्रीन इमिडाक्लोरोपिड 350 मिली व हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने कहा गया। इस उपाय से तना मक्खी का भी नियंत्रण होगा। दलहनी फसल उड़द एवं मूंग फसल में शाखा बनने की अवस्था में अत्यधिक खरपतवार होने पर नियंत्रण करें। झुलसा ब्लास्ट रोग की प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्तियों पर हल्के बैगनी रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़कर आंख के समान बीच में चौड़े व किनारों पर संकरे हो जाते हैं। इसके लिए ट्राइसाइक्लाजोल कवकनाशी जैसे बीम या बान 0.05 प्रतिशत का छिड़काव 12-15 दिन के अंतर से करना चाहिए। समय पर बुआई सन्तुलित उर्वरकों का उपयोग इस रोग को सीमित करने में मदद करते हैं। जीवाणु जनित झुलसा रोग के प्रारंभिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई व बुआई 20-25 दिनों बाद दिखाई देते हैं। सबसे पहले पत्तियों के किनारे वाला उपरी भाग हल्का पनीला सा हो जाता है तथा फिर मटमैला हरापन लिये हुए पीला सा होने लगता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए संतुलित उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। 
    नत्रजनयुक्त खादों का उपयोग निर्धारित मात्रा से अधिक नहीं करना चाहिये। रोग होने की दशा में पोटाश का उपयोग लाभकारी होता है। रोग होने की दशा में खेत की अनावश्यक पानी निकालते रहना चाहिये। शीथ ब्लाइट रोगी फसल अवशेषों को जलाकर नष्ट कर दें। पौधों की रोपाई बहुत पास-पास न करें। खड़ी फसल में रोग प्रकोप होने पर हेक्साकोनाजोल कवकनाशी 0.1 प्रतिशत का छिड़काव 10-12 दिन के अंतर से करने की सलाह दी गई।