छत्तीसगढ़ के स्कूलों में गिरती शैक्षणिक गुणवत्ता, आठवीं तक के कई बच्चे नहीं पढ़ पा रहे ठीक से…

रायपुर/राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ के कई शासकीय और ग्रामीण स्कूलों में पढ़ाई की गिरती गुणवत्ता को लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है। हालिया सर्वेक्षणों और अभिभावकों की शिकायतों से खुलासा हुआ है कि राज्य के अनेक स्कूलों में कक्षा आठवीं तक के विद्यार्थी न तो ठीक से पढ़ पा रहे हैं, न ही उन्हें लेखन का पर्याप्त अभ्यास कराया गया है।

शिक्षकों की लापरवाही और माता-पिता की उदासीनता बन रही बड़ी वजह
शिक्षकों द्वारा सभी बच्चों पर ध्यान न दे पाना, शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी कमज़ोरी बनकर उभर रही है। वहीं, घर पर भी माता-पिता बच्चों की पढ़ाई को लेकर सजग नहीं हैं। मोबाइल, टीवी और सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के कारण बच्चे किताबों से दूर होते जा रहे हैं।

पढ़ाई में पिछड़ रहे बच्चों के भविष्य पर संकट

यदि समय रहते इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो भविष्य में यह शिक्षा व्यवस्था प्रदेश के विकास में बड़ी बाधा बन सकती है। न पढ़ना आना, न ठीक से लिख पाना — यह स्थिति राज्य में मौलिक शिक्षा के उद्देश्य को ही विफल कर रही है।

शिक्षा विभाग उठाए ठोस कदम

शिक्षा विभाग को चाहिए कि स्कूलों में बच्चों की नियमित आधार पर मूल्यांकन प्रक्रिया को सख्ती से लागू करे, टीचरों की जवाबदेही तय की जाए और साथ ही डिजिटल डिवाइसेस के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने हेतु अभिभावकों को भी जागरूक किया जाए। बच्चों को बेसिक पढ़ने-लिखने की दक्षता दिलाना आज की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।

लक्ष्मी विश्वकर्मा ने कहा कि “बच्चों की यह स्थिति देखकर दिल दुखता है। सरकार ने शिक्षा सबके लिए सुलभ की है, पर गुणवत्ता की ओर कोई गंभीरता नहीं दिखती। मैं मांग करती हूं कि स्कूलों में ‘पढ़ना-लिखना सुधार’ अभियान चलाया जाए। अभिभावकों को भी यह समझना होगा कि बच्चों को केवल स्कूल भेज देना ही जिम्मेदारी नहीं है, पढ़ाई में नियमित रुचि और अनुशासन जरूरी है। बच्चों को टीवी और मोबाइल से दूर रखकर पुस्तकों से जोड़ना होगा, तभी हम आने वाली पीढ़ी को शिक्षित और आत्मनिर्भर बना सकेंगे।”